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चलती हूँ
 
चलती रहूंगी
 
शायद -कहीं
 
भी न पहुचने
 
के लिए  ...
  क्या पहुंच  
पाए कहीं
 
जो चलते रहे  ?
 
हर चोराहे पर
 
स्टॉप साईन था
 रुकना पड़ा ...  
फिर भी
 
लाँघ कर
 
सब - कुछ
 
पवन के -झोंके
 
चले -
 
उषा की
 
पाहुणी- ज्योति
 
चली ....
 
 
और पहुंच गई
 
हर मरुस्थल .... !
</Poem>
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