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मैं किसान का बेटा
मेरा सारा बदन
धनिए के टाट पर सोने से अकड़ा-ऎंठाऐंठा
इस वन के बबूलों में सोई
मैं भी गा रहा हूँ
मीठा लग रहा है
मैंने देखा थोड़ा-सा अंधेराअँधेरा
वह किस तरह ढहा-गिरा-झरा
और अब
ये अंधेरे अँधेरे की आख़िरी पर्त गिर रही है
और वह दिखा पूरब
बादलों के मचान से वह सूर्य उगा
काम करने की लगन लाल उर्जा से भरा।
</poem>