सूर स्याम मुख निरखि जसोदा,मन-हीं-मन जु सिहानी ॥<br><br>
भावार्थ :-- श्रीनन्दरानी जगाती हुई कह रही हैं कि ~- नन्दनन्दन ! उठो, प्रातःकाल हो गया । हे शार्ङ्गपाणि मोहन! झारीके जलसे झारी के जल से आनन्दपूर्वक मुख धो लो । मक्खन रोटी, मधु, मेवा आदि जो (भी) अच्छा लगे वह आकर लो।' सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि (इस प्रकार जगातेसमयजगाते समय) श्यामसुन्दरका श्यामसुन्दर का मुख देखकर यशोदाजी यशोदा जी मन-ही-मन फूल रही हैं ।