सूर नंद बलरामहि धिरयौ, तब मन हरष कन्हैया ॥<br><br>
भावार्थ :-- (श्यामसुन्दर कहते हैं)` अब मेरी बला खेलने जाय ( मैं तो खेलने जाऊँगा नहीं )। जब भी भैया बलराम मुझे लड़कोंके लड़कों के साथ खेलते देखते हैं, तभी झगड़ने लगते हैं;मुझसे कहते हैं--`तू वसुदेवजीका वसुदेव जी का पुत्र है, तेरी माता देवकी हैउन्हें है उन्हें कुछ देकर (व्रजराजनेव्रजराज ने) तुझे मोल ले लिया और अनेक उपाय करके बड़ा किया ।अब । अब तू श्रीनन्दजीको श्रीनन्द जी को बाबा कहकर पुकारता है और श्रीयशोदाजीको श्रीयशोदा जी को मैया कहता है । इस प्रकारकी प्रकार की बातें कहकर सब मुझे चिढ़ाते हैं, इससे रुष्ट होकर मैं वहाँ से उठकर चला आया ।' पीछे खड़े नन्दजी नन्द जी यह सुन रहे थे, उन्होंने हँसते-हँसते मोहन को हृदयसे हृदय से लगा लिया । सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि श्रीनन्दजीने बलरामजी श्रीनन्द जी ने बलराम जी को डाँटा, तब कन्हाई मनमें मन में प्रसन्न हुए ।