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हाइकु 121-140/ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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08:27, 16 अप्रैल 2012
मीत नहीं थे ।
133
मिली न पाती
संदेसा दे गया था
तेरा ये मन ।
युगों जी लूँगा ।
137
याद करूँ मैं
तुमको कैसे , जब
भूला ही नहीं ।
वीरबाला
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