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खेलत बनैं घोष निकास / सूरदास

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सूरदास कहत सुदामा, कौन ऐसौ खेल ॥<br><br>
भावार्थ :-- (सखाओंनेकहासखाओं ने कहा-) `चतुर शिरोमणि श्यामसुन्दर ! सुनो । यहाँ तो घर पास है, ग्रामके ग्राम के बाहर मैदान मैं खेलते बनेगा (खेलनेकी खेलने की स्वच्छंतता रहेगी)।' कन्हाई और श्रीबलराम- ये दोनों भाई जिनकी भुजाएँ बलवान् थी और जो स्वयं भी अत्यन्त शक्तिमान थे,एक दलके दल के प्रमुख हो गये । सुबल, श्रीदामा और सुदामा दूसरी ओर हो गये ।गोपबालकोंके समूहके । गोपबालकों के समूह के दूसरे सखाओंका सखाओं का भी बँटवारा करा लिया । श्रीनन्दनन्दन बड़ी उमंगमें उमंग में भरकर व्रजकी व्रज की गलियों में खेलते हुए (ग्रामके ग्राम के बाहर) चल पड़े । (बाहर जाकर ) गेंद पृथ्वीपर पृथ्वी पर डाल दिया और उसे लुढ़काते हुए ले चले । सब अपना-अपना अवसर देखते थे, खेल भली प्रकार जम गया । श्यामसुन्दरने श्यामसुन्दर ने देखा कि सखा जीत रहे हैं, तब कुछ मनमानीकरने मनमानी करने लगे । सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि (उनकी मनमानी देखकर) सुदामाने सुदामा ने कहा--`ऐसाबेईमानीका) ऐसा बेईमानी का खेल कौन खेले ?'