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सात छेद वाली मैं (ताँका-संग्रह) / सुधा गुप्ता
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11:41, 17 अप्रैल 2012
* सुधा जी जब लिखती हैं तो मानो भावों का दरिया बहने लगता है और पढ़ने वाला बहता चला जाता है ...
* सभी हाइकु एक से बढ़कर एक हैं ....
* पाठक की तो पढ़ते समय
आँखे
आँखें
खुली की खुली और होंठ सिल जाते हैं जब आपको पढ़ते हैं !
</poem>
वीरबाला
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