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वर्तनी शुद्धि
'''मेनका
कौन भेद है, क्या अंतर है धरती और गगन मॅमें उठता है यह प्रश्न कभी रम्भे! तेरे भी मन मॅ?में
रम्भा
गन्धॉ की सीमा से आगे देव न जा सकते है.
क्या है यह अमरत्व? समीरॉसमीरों-सा सौरभ पीना है,
मन मॅ धूम समेट शांति से युग-युग तक जीना है.
पर, सोचो तो, मर्त्य मनुज कितना मधु-रस पीता है!
दो दिन ही हो, पर, कैसे वह धधक-धधक जीता है!
इन ज्वलंत वेगॉ वेगों के आगे मलिन शांति सारी है
क्षण भर की उन्मद तरंग पर चिरता बलिहारी है.
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