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हाइकु / सुदर्शन प्रियदर्शिनी
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11:29, 18 मई 2012
खुला है तन
(4)
आँख
मूँद के
मूँदके
पीते हैं हलाहल
कैसा सकून
?
(5)
पीड़ा के पेड़
नये नकोर
(7)
पाप
-
पुन्न की
अपनी परिभाषा
आशा ही आशा
(8)
सुकरात को
दिया विष प्याला
भवामि युगे
</poem>
वीरबाला
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