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गिलहरी / जगदीश व्योम
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16:15, 21 मई 2012
<poem>
गिलहरी दिन भर आती-जाती
फटे-पुराने कपड़े लत्ते
धागे और ताश के पत्ते
सुतली, कागज, रुई, मोंमियाँ
अगड़म-बगड़म लाती।
गिलहरी दिनभर आती-जाती।।
डा० जगदीश व्योम
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