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जगह-जगह तेरी बातें थीं / शमशेर बहादुर सिंह
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07:43, 30 सितम्बर 2007
सदाए-बाँगे-जरस=घंटियों की आवाज़ की धुन; नज़ाद=वंश
यह क़िता अप्रतिम एकांकी-
नातककार
नाटककार
भुवनेश्वर की याद को समर्पित है ।
'कारवाँ' भुवनेश्वर के एकांकी-संग्रह का शीर्षक है ।
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