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लगन लागी ना अन्तर पट में / शिवदीनराम जोशी
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06:10, 30 मई 2012
|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
}}
<poem> लगन लागी ना अन्तर पट में।
दर्शन केहि विधी होय, राम बैठे है तेरे घट में।
तन की चोरी, मन की चोरी, करती रहती सुरता गोरी,
आशिष पुरोहित
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