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भगवत रावत / परिचय

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सुलभा लागू, उत्पल बनर्जी, अभय नेमा और विनीत तिवारी ने भगवत जी कि चुनिन्दा रचनाओं का पाठ किया. अनंत श्रोत्रिय जी की अध्यक्षता में जवाहर
चौधरी, चुन्नीलाल वाधवानी, एस के दुबे, विश्वनाथ कदम तौफीक गौरी, आदि सभी ने अपने प्रिय कवि और एक बहुत प्यारे इंसान [[भगवत रावत]]जी को श्रद्धांजलि दी.
उनकी एक कविता है-
'अपना गाना' जिसकी आरंभिक पंक्तियां हैं-
 
''जब मैं लौटूंगा इस सड़क से,
 
देर रात गए,
 
अपने पक्के मकान की तरफ,
 
तब वे लोग,
 
इसी सड़क के किनारे गा रहे होंगे।''
 
भगवत रावत की आंतरिक कविता संसार बहुत विस्तृत था और जब वे अपनी कविता में उसे व्यक्त करते थे जाने कैसे इतने सहज हो जाते थे। किसी भी स्थिति में सहज बने रहना संभवत: बेहद कठिन काम होता है। समाज की अमानवीय स्थितियों के प्रति विरोध और क्रोध भगवत रावत की कविता में अपने समय की नब्ज को पकड़ने की तरह आता है। वे अपने अंतस की वेदना को एक तरह के गहरे आत्मविश्वास के साथ शब्द देते थे, इसीलिए उनके शब्दों का मर्म छूता था। अपनी कविता के माध्यम से जिस संसार की रचना वे करते थे, वह हमें अपने ही इर्द-गिर्द फैला हुआ लगता था सिर्फ हमारी दृष्टि बदल जाती थी या कहें कि उसका विस्तार हो जाता था और कविता के उन अनाम पात्रों के साथ हमारा संवाद सहज हो जाता था।
 
उनकी कविता 'प्यारेलाल के लिए बिदा गीत' की अंतिम पंक्तियां याद आ रही हैं-
 
''चलो देर मत करो,
 
देखो तुम्हारे रथ के घोडे बाहर हिनहिना रहे हैं,
 
सारी तैयारी है, बड़े-बड़े लोग परेशान हैं,
 
तुम्हारे गुण गाने को,
 
नियम के मुताबिक तुम्हारे जीते जी,
 
वे ऐसा नहीं कर सकते,
 
देरी करने में कोई लाभ नहीं,
 
उनकी मजबूरी समझो,
 
जल्दी करो मरो-मरो प्यारेलाल।''
 
[[भगवत रावत]] की कविता की इन्हीं पंक्तियों के साथ उन्हें विनम्र श्रध्दांजलि।
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