{{KKRachnakaarParichay
|रचनाकार=भगवत रावत
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'''सुदर्शन व्यक्तित्व और यथार्थ के खुरदुरे धरातल के कवि [[भगवत रावत]]'''
उनकी एक कविता है-
'[[अपना गाना/ भगवत रावत|अपना गाना]] ' जिसकी आरंभिक पंक्तियां हैं-
जब मैं लौटूंगा इस सड़क से,
भगवत रावत की आंतरिक कविता संसार बहुत विस्तृत था और जब वे अपनी कविता में उसे व्यक्त करते थे जाने कैसे इतने सहज हो जाते थे। किसी भी स्थिति में सहज बने रहना संभवत: बेहद कठिन काम होता है। समाज की अमानवीय स्थितियों के प्रति विरोध और क्रोध भगवत रावत की कविता में अपने समय की नब्ज को पकड़ने की तरह आता है। वे अपने अंतस की वेदना को एक तरह के गहरे आत्मविश्वास के साथ शब्द देते थे, इसीलिए उनके शब्दों का मर्म छूता था। अपनी कविता के माध्यम से जिस संसार की रचना वे करते थे, वह हमें अपने ही इर्द-गिर्द फैला हुआ लगता था सिर्फ हमारी दृष्टि बदल जाती थी या कहें कि उसका विस्तार हो जाता था और कविता के उन अनाम पात्रों के साथ हमारा संवाद सहज हो जाता था।
उनकी कविता '[[प्यारेलाल के लिए बिदा गीत/ भगवत रावत|प्यारेलाल के लिए बिदा गीत]] ' की अंतिम पंक्तियां याद आ रही हैं-
चलो देर मत करो,