{{KKRachna
|रचनाकार=अरविन्द श्रीवास्तव
|संग्रह=राजधानी में एक उज़बेक लड़की / अरविन्द श्रीवास्तव
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<poemPoem>उसकी साँसे गिरबी गिरवी पड़ी हैं मौत के घरपलक झपकते किसी भी वक्तवक़्त
लपलपाते छुरे का वह बन सकता है शिकार
वह तलाश रहा है किसी मददगार को
कुछ बहशियों वहशियों ने पकड़ रखा है उसे
पशु की मानिंद
उनकी मंशाएँ ठीक नहीं लगतीं
चाहता हूँ मैं उसे बचाना
पास खडे़ पुलिस पुलिसवाले की गुरेरती आँखें देख रही हैं मुझे!
</poem>