==संस्कृत में पद्य-रचना==
[[संवत]] [[१६२८]] में येह हनुमान्जीकी आज्ञासे अयोध्याकी हनुमान जी की आज्ञा से अयोध्या की ओर चल पड़े। उन दिनो प्रयागमें [[प्रयाग में माघ मेला]] था। वहाँ कुछ दिन वे ठहर गये। पर्वके पर्व के छः दिन बाद एक [[वटवृक्ष]] के नीचे उन्हें [[भारद्वाज]] और [[याज्ञवल्क्य]] [[मुनि]] के दर्शन हुए। वहाँ उस समय वही कथा हो रही थी, जो उन्होने सूकरक्षेत्रमें सूकर क्षेत्र में अपने गुरु से सुनी थी। वहाँ से ये [[काशी]] चले आये और वहाँ [[प्रह्लादघाट]] पर एक [[ब्राह्मण]] के घर निवास किया। वहाँ उनके अंदर कवित्वशक्तिका कवित्व शक्ति का स्फुरण हुआ और वे [[संस्कृत]] में पद्य-रचना करने लगे। परंतु दिनमें दिन में वे जितने [[पद्य]] रचते, रात्रि में वे सब लुप्त हो जाते। यह घटना रोज घटती। आठवें दिन तुलसीदासजीको तुलसीदास जी को स्वप्न हुआ। भगवान् [[शिव|शंकर]] ने उन्हें आदेश दिया कि तुम अपनी भाषामें [[काव्य]] रचना करो। तुलसीदासजीकी तुलसीदास जी की नींद उचट गयी। वे उठकर बैठ गये। उसी समय भगवान् [[शिव]] और [[पार्वती]] उनके सामने प्रकट हुए। तुलसीदासजीने तुलसीदास जी ने उन्हें [[साष्टाङ्ग प्रणाम]] किया। शिवजी शिव जी ने कहा- 'तुम अयोध्यामें अयोध्या में जाकर रहो और हिंदी में काव्य-रचना करो। मेरे आशीर्वादसे आशीर्वाद से तुम्हारी कविता [[सामवेद]] के समान फलवती होगी।' इतना कहकर [[कह कर गौरीशंकर]] अन्तर्धान हो गये। तुलसीदासजी तुलसीदास जी उनकी आज्ञा शिरोधार्य कर काशीसे काशी से अयोध्या चले आये।
==रामचरितमानस की रचना==