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सीढ़ियों पर / कंस्तांतिन कवाफ़ी
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05:38, 20 जून 2012
मैंने दिया प्रेम तुम्हें वैसा, जैसा तुमने चाहा
थके हुए बदन
थकी हुई आँखों
से तुमने भी मुझ पर प्रेम लुटाया
बदन हमारे जल रहे थे, एक-दूजे को दाहा
पर घबराए हम पड़े हुए थे, कोई न कुछ कर पाया
अनिल जनविजय
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