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ज़ेनिया एक-14 / एयूजेनिओ मोंताले
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21:34, 22 जून 2012
मुझे अधिक संगत प्रतीत होती है ।
तब भी, यह जानते हुए भी कि हम एकप्राण थे—
भले एक शरीर में या दो में, मुझे शान्ति नहीं मिल पाती ।
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'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
</poem>
अनिल जनविजय
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