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20:24, 8 जुलाई 2012 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=पंकज चतुर्वेदी}}
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अलस्सुबह ग्राम-प्रधान अपने तख़्त पर
नर्म बिछावन पर
शीर्षासन कर रहे थे
जो किसान उनसे मिलने गया
उसके मुताबिक़
प्रधान तख़्त पर उलटा खड़े थे
उसने उनसे पूछा :
क्या इसमें समय लगेगा ?
प्रधान ने आँखों और भौंहों के
समवेत इशारे से कहा :
हाँ
उतनी देर वह इंतिज़ार करता रहा
व्यायाम के बाद
उन्होंने पूछा :
क्या काम है ?
किसान को बैंक से क़र्ज़
इसलिए उसके प्रार्थना-पत्र पर
प्रधान की सिफ़ारिश के
दस्तख़त चाहिए थे
काग़ज़ को उन्होंने ग़ौर से पढ़ा
फिर बोले :
इसमें तो हम फँस जायेंगे !
किसान ने आव देखा न ताव
क़र्ज़ का ख़याल ही न रहा
काग़ज़ वापस लेकर कहा :
फँस तुम नहीं जाओगे
फँस हम गये हैं
तुम्हें वोट देकर फँस गये हैं
</poem>