1,707 bytes added,
20:26, 8 जुलाई 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पंकज चतुर्वेदी}}
<poem>
राम-लीला में धनुष-यग्य के दिन
राम का अभिनय
राजकुमार का अभिनय है
मुकुट और राजसी वस्त्र पहने
गाँव का नवयुवक नरेश
विराजमान था रंगमंच पर
सीता से विवाह होते-होते
सुबह की धूप निकल आयी थी
पर लीला अभी जारी रहनी थी
अभी तो परशुराम को आना था
लक्ष्मण से उनका लम्बा संवाद होना था
नरेश के पिता किसान थे
सहसा मंच की बग़ल से
दबी आवाज़ में उन्होंने पुकारा :
नरेश ! घर चलो
सानी-पानी का समय हो गया है
मगर नरेश नरेश नहीं था
राम था
इसलिए उसने एक के बाद एक
कई पुकारों को अनसुना किया
आख़िर पिता मंच पर पहुँच गये
और उनका यह कहा
बहुतों ने सुना-----
लीला बाद में भी हो जायेगी
पर सानी-पानी का समय हो गया है
</poem>