गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है / वसीम बरेलवी
4 bytes added
,
04:48, 5 अगस्त 2012
पहले ये तय हो कि इस घर को बचायें कैसे
क़हक़हा आँख का
बरताव
बर्ताव
बदल देता है
हँसनेवाले
हँसने वाले
तुझे आँसू नज़र आयें कैसे
कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा
एक क़तरे को समुन्दर नज़र आयें कैसे </poem>
द्विजेन्द्र द्विज
Mover, Uploader
4,005
edits