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तुम निश्चिन्त रहना / किशन सरोज
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08:01, 8 अगस्त 2012
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<poem>
कर दिए लो आज गंगा में प्रवाहित
सब तुम्हारे पत्र, सारे चित्र, तुम निश्चिन्त रहना
धुंध डूबी घाटियों के
इंद्रधनुष
इंद्रधनु तुम
छू गए नत भाल पर्वत हो गया मन
बूंद भर जल बन गया पूरा समंदर
Lalit Kumar
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