1,109 bytes added,
03:50, 4 अक्टूबर 2007 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= "कुमार विश्वास
}}
सब तमन्नाएँ हों पूरी , कोई ख्वाहिश भी रहे
चाहता वो है, मुहब्बत मे नुमाइश भी रहे
आसमाँ चूमे मेरे पँख तेरी रहमत से
और किसी पेड की डाली पर रिहाइश भी रहे
उसने सौंपा नही मुझे मेरे हिस्से का वजूद
उसकी कोशिश है की मुझसे मेरी रंजिश भी रहे
मुझको मालूम है मेरा है वो मै उसका हूँ
उसकी चाहत है की रस्मों की ये बंदिश भी रहे
मौसमों मे रहे 'विश्वास' के कुछ ऐसे रिश्ते
कुछ अदावत भी रहे थोडी नवाज़िश भी रहे