Changes

साँचा:KKPoemOfTheWeek

810 bytes removed, 07:49, 9 अगस्त 2012
<td rowspan=2>
<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : स्त्री की तीर्थयात्रा वतन का गीत '''रचनाकार:''' [[विश्वनाथप्रसाद तिवारीगोरख पाण्डेय]] </div>
</td>
</tr>
</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
सवेरे-सवेरेहमारे वतन की नई ज़िन्दगी होउसने बर्तन साफ़ किएनई ज़िन्दगी इक मुकम्मिल ख़ुशी होघर-भर के जूठे बर्तननया हो गुलिस्ताँ नई बुलबुलें होंझाड़ू-पोंछे के बादमुहब्बत की कोई नई रागिनी होबेटियों को संवार करन हो कोई राजा न हो रंक कोईस्कूल रवाना कियासभी हों बराबर सभी आदमी होंसबके लिए बनाई चायन ही हथकड़ी कोई फ़सलों को डाले जब वह छोटा बच्चा ज़ोर-ज़ोर रोने लगावह बीच में उठी पूजा छोड़करउसका सू-सू साफ़ किया दोपहर भोजन के आख़िरी दौर मेंआ गए एक मेहमानदाल में पानी मिला करकिया उसने अतिथि-सत्कारऔर बैठ गई चटनी के साथबची हुई रोटी लेकर क्षण भर चाहती थी वह आरामकि आ गईं बेटियाँ स्कूल से मुरझाई हुईंउनके टंट-घंट में जुटीफिर जुटी संझा हमारे दिलों की रसोई मेंन सौदागरी होज़ुबानों पे पाबन्दियाँ हों न कोईरात निगाहों में सबके बाद खाने बैठीअब की रोटी के साथ थी सब्ज़ी भीजिसे पति ने अपनी रुचि से ख़रीदा थानई रोशनी हो बिस्तर पर गिरने न अश्कों से पहलेनम हो किसी का भी दामनवह अकेले में थोड़ी देर रोईन ही कोई भी क़ायदा हिटलरी होअपने स्वर्गीय बाबा की याद सभी होंठ आज़ाद हों मयक़दे में फिर पति की बाँहों मेंसोचतेकि गंगो-सोचते बेटियों के ब्याह के बारे मेंग़ायब जमन जैसी दरियादिली हो गई सपनों की दुनिया मेंऔर नींद में ही पूरी कर ली उसनेनये फ़ैसले हों नई कोशिशें होंसभी तीर्थों नयी मंज़िलों की यात्रा ।कशिश भी नई हो
</pre></center></div>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,726
edits