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कवि जन कहत कहत सब आए, सुधि कर नाहिं कही ॥<br>
कहि चकोर बिधु मुख बिनु जीवत , भ्रमर नहीं उड़ि जात ।<br>
हरि-मुख कमल कोष बिछुरे तैं, ठाले कत ठहरात ॥<br>
ऊधौ बधिक ब्याध ह्वै आए, मृग सम क्यौं न पलात ।<br>
भागि जाहिं बन सघन स्याम मैं , जहाँ न कोऊ घात ॥<br>