{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=उमेश चौहान
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
पैदा हुए थे तुम
बड़े ही अनाम कुल में
इस ऊबड़-खाबड़ धरातल पर पाँव जमाकर
एक सीधी-साधी चाल चलने की जद्दोज़हद में।
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=उमेश चौहान
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
लछिमन! तुम्हारी आँखों ने