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16:01, 8 सितम्बर 2012 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मनु 'बे-तख़ल्लुस'
|संग्रह=
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
तेरी जिद से परीशां है तेरा ही आशना कोई
हो मुश्किल बहर से लाचार जैसे काफिया कोई
खुदाया कुछ जजा तो बख्श मेरी बुत-परस्ती को
मेरी राहों तलक भी आये उनका रास्ता कोई
वो मेरी कैफियत जो देख लें, मगरूर हो जाएँ
मेरे आगे जब उनका ज़िक्र छेड़े दूसरा कोई
खुदा कब पूछ बैठा वो इबादत क्या हुई तेरी
कहा अब दिल में शायद आ बसा है आपसा कोई
सुना था दर्द बढ़ जाने से भी आराम मिलता है
दवाओं का भला अहसां उठाये क्यूं भला कोई
न जाने क्या निकाला उसने मेरी बात का मतलब
रहा खाली निगाहों से खला में ताकता कोई
कहाँ तो वक़्त काटे जा रहा है 'बे-तखल्लुस' को
कहाँ देखा गया है वक़्त अपना काटता कोई.
</poem>