जब तू चाहे घटा-मिटाकर
अपने नक्शे में दिखला ले ?
हथकडियाँ कड़कड़ा,बेड़ियों को तड़काकर,
अपने बल पर मुक्त, खड़ी
भारत माता का
रूप विराट
मदांध,नहिं तूने देखा है;
(नशा पुराना जलद नहिं उतरा करता है.
और न अपने भौतिक दृग से देख सकेगा.
आकर कवि से दिव्यदृष्टि ले.
पूरब,पश्चिम,दक्षिण से आ
अगम जलंभर,उच्छल फेनिल
हिंदमहासागर की अगणित
हिल्लोलित,कल्लोलित लहरें
जिन्हें अहर्निश
प्रक्षालित करती रहती हैं,
अविरल,
वे भारत माता के
पुण्य चरण हैं--
पग-नखाग्र कन्याकुमारिका-मंदिर शोभित.
और पूरबी घाट,पश्चिमी घाट
उसी के पिन,पुष्ट,दृढ नघ-पट हैं.
विंध्य-मेखला कसी हुई कटि प्रदेश में.
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