Changes

अगर ऐसा भी हो सकता... /गुलज़ार

8 bytes added, 11:18, 29 सितम्बर 2012
ये हो सकता अगर मुमकिन--
तुम्हें मालूम हो जाता--
तुम्हें मैं ले गया था सरहदों के पार "दीना"1 में.
तुम्हें वो घर दिखया था,जहाँ पैदा हुआ था मैं,
जहाँ छत पर लगा सरियों का जंगला धूप से दिनभर
उसी की सोंधी खुश्बू से,महक उठती हैं आँखे
जब कभी उस ख़्वाब से गुज़रूं!
तुम्हें'रोहतास'2 का 'चलता-कुआँ' भी तो
दिखाया था,
किले में बंद रहता था जो दिन भर,रात को
गाँव में आ जाता था,कहते हैं,
तुम्हें "काला"3 से "कालूवाल"4 तक ले कर
उड़ा हूँ मैं
तुम्हें "दरिया-ए-झेलम"पर अजब मंजर दिखाए थे
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,131
edits