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07:01, 7 अक्टूबर 2012 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=‘शुजाअ’ खावर
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इस एतबार से बेइन्तहा ज़रूरी है
पुकारने के लिए इक ख़ुदा ज़रूरी है
हज़ार रंग में मुमकिन है दर्द का इज़हार
तिरे फ़िराक़ में मरना ही क्या ज़रूरी है
शऊर शह्र के हालत का नहीं सबको
बयान शह्र के हालत का ज़रूरी है
कुछ ऐसे शेर हैं यारों जो हम नहीं कहते
हरेक बात का इज़हार क्या ज़रूरी है
‘शुजाअ’ मौत से पहले ज़रूर जी लेना
ये काम भूल न जाना बड़ा ज़रूरी है
</poem>