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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=‘शुजाअ’ खावर }} {{KKCatGhazal}} <poem> लोग खुश ह...' के साथ नया पन्ना बनाया
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{{KKRachna
|रचनाकार=‘शुजाअ’ खावर
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लोग खुश हैं और हमको ज़ात का ग़म हो रहा है
दिन-ब-दिन दुनिया से अपना राबता कम हो रहा है

वो समझ ले जो समझ सकता है हम फिर कह रहे हैं
कर्बला में आजकल जश्ने-मुहर्रम हो रहा है

इस तरफ हालात के हरबे बराबर बढ़ रहे हैं
उस तरफ यादों का दस्ता फिर मुनज्ज़म हो रहा है

हम बज़ोमे-ख़ुद बहुत बरहम ज़माने से हैं लेकिन
लोग कहते हैं ज़माना हमसे बरहम हो रहा है

जाने कब बदलेगा ये मंज़र जहाने-आरज़ू का
हादसा होने से पहले इतना मातम हो रहा है
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