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आधी रात को / फ़िराक़ गोरखपुरी
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05:42, 8 अक्टूबर 2012
१.
सियाह पेड़ हैं अब आप अपनी परछाईं
जमीं से
ता१
ता
महो-अंजुम सुकूत के मीनार
जिधर निगाह करे इक अथाह गुमशुदगी
एक-एक करके अफ़सुर्दा चिरागों की पलकें
Sharda suman
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