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रवि रश्मि किरीट धरे / जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’
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08:27, 7 नवम्बर 2012
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रवि रश्मि किरीट धरे द्युति कुन्तलों की नव नीर धरों पय
लिये
लिए
श्रुति भार हितैषी स्ववादित वीण का किन्नरों से भ्रमरों पय
लिये
लिए
उतरी पड़ती नभ से परी सी मानो स्वर्ण प्रभात परों पय
लिये
लिए
किरणों के करों सरों के जलजात उषा की हँसि अधरों पय
लिये
लिए
<poem>
अनिल जनविजय
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