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{{KKRachna
| रचनाकार= द्विजेन्द्र 'द्विज'
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<poem>
नज़्र<ref>भेंट<ref/> मैं क्या करूँ नाज़िर<ref>दर्शक<ref/>मेरे
ज़ख्म इतने नहीं नादिर<ref>अद्भुत/अनूठा<ref/> मेरे

बेशक अल्फ़ाज़<ref>शब्द<ref/> हैं फ़ाकिर<ref> फ़कीर का बहुवचन, सन्यासी, दरवेश,<ref/> मेरे
जान-ओ-दिल अब भी हैं काफ़िर<ref>ईश्वर की दी हुई नेमतों पर कृतज्ञता प्रकट न करने वाला<ref/>मेरे

चुप रहे गर्चे<ref>यद्यपि<ref/> मुक़र्रिर<ref>वक्ता<ref/> मेरे
बोल उठ्ठेंगे मक़ाबिर<ref>क़ब्रें: मक़बरे का बहुवचन<ref/>मेरे

तेरी नज़रों से भला क्या पर्दा
ज़ख़्म ग़ायब हैं बज़ाहिर<ref> प्रत्यक्षतय: <ref/>मेरे


वो न होता तो न होता कुछ भी
मस्जिदें तेरी न मंदिर मेरे

इन पे कोई नहीं आने वाला
अश्क मेरे हैं जज़ाइर मेरे<ref> द्वीप ; जज़ीरा का बहुवचन <ref/>

ख़ाक तो डाल ही देंगे मुझपर
काम कब आएँगे आख़िर मेरे

अब सिला मैं वफ़ा का क्या ढूँढूँ
हैं मुआशिर<ref>मित्र<ref/> भी तो मुन्क़िर<ref>कृतघ्न<ref/> मेरे

मुझको इक रंग तो देता अपना
मेरे मौला ओ मुसव्विर<ref>चितेरा, चित्रकार<ref/> मेरे

मैंने पाए जो तेरी फ़ुर्क़त<ref>विरह<ref/> में
दर्द मेरे वो हैं फ़ाख़िर<ref>बहुमूल्य वस्तुएँ<ref/>मेरे

मैंने जितने भी तराशे अब तक
संग वो हो गए कासिर<ref>तोड़ने वाले; भंजक<ref/> मेरे

बन्द पिंजरे में सजाकर मुझको
मेरे क़ाइल <ref>लाजवाब,निरुत्तर, प्रशंसक<ref/> हुए साहिर <ref>जादूगर<ref/> मेरे

इक तसव्वुर<ref>कल्पना<ref/> का है सूरज दिल में
जिनसे रौशन हैं अनासिर<ref>पंचतत्व; पंचभूत;आग,पानी,हवा,मिट्टी और आकाश<ref/> मेरे


हादिसों में है तू ही इक हाफ़िज़<ref>रक्षक<ref/>
और हवा में अभी ताइर<ref>पक्षी ;परिन्दे<ref/>मेरे

ये सफ़ीना<ref>जहाज़;नौका<ref/> तो मेरे अज़्म<ref>इरादा<ref />से है
गो हवाएँ हैं मुग़ाइर<ref>प्रतिकूल<ref/> मेरे

एक मंज़र<ref>दृश्य<ref/> वो तेरे जाने का
धो गया सारे मनाज़िर<ref> दृश्य का बहुवचन<ref/> मेरे

मेरे अशआर<ref>शे’र का बहुवचन<ref/> सुनाते हैं मुझे
अपने लफ़्ज़ों में मुआसिर<ref>समकालीन<ref/> दृश्य मेरे

तुझको छू लें तो ग़नीमत जानूँ
शे’र हो जाएँ मआसिर<ref>सुकृतियाँ; स्मृति चिन्ह<ref/> मेरे

हूँ अनासिर<ref> पंचतत्व; पंचभूत;आग,पानी, हवा, मिट्टी और आकाश<ref/> के हवाले जब तक
कैसे जज़्बात<ref>भावनाएँ<ref/> हों ताहिर<ref>पवित्र;शुद्ध<ref/>मेरे

मेरे अशआर<ref>शे’र का बहुवचन<ref/> सुनाते हैं मुझे
अपने लफ़्ज़ों में मुआसिर<ref>समकालीन<ref/> दृश्य मेरे

तुझको छू लें तो ग़नीमत जानूँ
शे’र हो जाएँ मआसिर<ref>सुकृतियाँ; स्मृति चिन्ह<ref/> मेरे

हूँ अनासिर<ref> पंचतत्व; पंचभूत;आग,पानी, हवा, मिट्टी और आकाश<ref/> के हवाले जब तक
कैसे जज़्बात<ref>भावनाएँ<ref/> हों ताहिर<ref>पवित्र;शुद्ध<ref/> मेरे

शे’र सारे ये कहे हैं `द्विज’ ने
तू तो ग़ायब रहा शाइर मेरे


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