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{{KKCatGhazal}}
<poem>
नज़्र<ref>भेंट<ref/ref> मैं क्या करूँ नाज़िर<ref>दर्शक<ref/ref>मेरेज़ख्म इतने नहीं नादिर<ref>अद्भुत/;अनूठा<ref/ref> मेरे
बेशक अल्फ़ाज़<ref>शब्द<ref/ref> हैं फ़ाकिर<ref> फ़कीर का बहुवचन, सन्यासी, दरवेश,<ref/ref> मेरेजान-ओ-दिल अब भी हैं काफ़िर<ref>ईश्वर की दी हुई नेमतों पर कृतज्ञता प्रकट न करने वाला<ref/ref>मेरे
चुप रहे गर्चे<ref>यद्यपि<ref/ref> मुक़र्रिर<ref>वक्ता<ref/ref> मेरे बोल उठ्ठेंगे मक़ाबिर<ref>क़ब्रें: मक़बरे का बहुवचन<ref/ref>मेरे
तेरी नज़रों से भला क्या पर्दा
ज़ख़्म ग़ायब हैं बज़ाहिर<ref> प्रत्यक्षतय: <ref/ref>मेरे
अब सिला मैं वफ़ा का क्या ढूँढूँ
हैं मुआशिर<ref>मित्र<ref/ref> भी तो मुन्क़िर<ref>कृतघ्न<ref/ref> मेरे
मुझको इक रंग तो देता अपना
मेरे मौला ओ मुसव्विर<ref>चितेरा, चित्रकार<ref/ref> मेरे
मैंने पाए जो तेरी फ़ुर्क़त<ref>विरह<ref/ref> मेंदर्द मेरे वो हैं फ़ाख़िर<ref>बहुमूल्य वस्तुएँ<ref/ref>मेरे
मैंने जितने भी तराशे अब तक
संग वो हो गए कासिर<ref>तोड़ने वाले; भंजक<ref/ref> मेरे
बन्द पिंजरे में सजाकर मुझको
मेरे क़ाइल <ref>लाजवाब,निरुत्तर, प्रशंसक<ref/ref> हुए साहिर <ref>जादूगर<ref/ref> मेरे
इक तसव्वुर<ref>कल्पना<ref/> का है सूरज दिल में
जिनसे रौशन हैं अनासिर<ref>पंचतत्व; पंचभूत;आग,पानी,हवा,मिट्टी और आकाश<ref/ref> मेरे
हादिसों में है तू ही इक हाफ़िज़<ref>रक्षक<ref/ref> और हवा में अभी ताइर<ref>पक्षी ;परिन्दे<ref/ref>मेरे
ये सफ़ीना<ref>जहाज़;नौका<ref/ref> तो मेरे अज़्म<ref>इरादा<ref /ref>से है गो हवाएँ हैं मुग़ाइर<ref>प्रतिकूल<ref/ref> मेरे
एक मंज़र<ref>दृश्य<ref/ref> वो तेरे जाने का धो गया सारे मनाज़िर<ref> दृश्य का बहुवचन<ref/ref> मेरे
मेरे अशआर<ref>शे’र का बहुवचन<ref/ref> सुनाते हैं मुझे
अपने लफ़्ज़ों में मुआसिर<ref>समकालीन<ref/> दृश्य मेरे
तुझको छू लें तो ग़नीमत जानूँ
शे’र हो जाएँ मआसिर<ref>सुकृतियाँ; स्मृति चिन्ह<ref/ref> मेरे
हूँ अनासिर<ref> पंचतत्व; पंचभूत;आग,पानी, हवा, मिट्टी और आकाश<ref/ref> के हवाले जब तक
कैसे जज़्बात<ref>भावनाएँ<ref/> हों ताहिर<ref>पवित्र;शुद्ध<ref/>मेरे
मेरे अशआर<ref>शे’र का बहुवचन<ref/ref> सुनाते हैं मुझेअपने लफ़्ज़ों में मुआसिर<ref>समकालीन<ref/ref> दृश्य मेरे
तुझको छू लें तो ग़नीमत जानूँ
शे’र हो जाएँ मआसिर<ref>सुकृतियाँ; स्मृति चिन्ह<ref/ref> मेरे
हूँ अनासिर<ref> पंचतत्व; पंचभूत;आग,पानी, हवा, मिट्टी और आकाश<ref/ref> के हवाले जब तककैसे जज़्बात<ref>भावनाएँ<ref/ref> हों ताहिर<ref>पवित्र;शुद्ध<ref/ref> मेरे
शे’र सारे ये कहे हैं `द्विज’ ने
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