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01:19, 7 दिसम्बर 2012 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मयंक अवस्थी
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<poem>
कोई दस्तक कोई ठोकर नहीं है
तुम्हारे दिल में शायद दर नहीं है
वहाँ नरगिस का दीदावर नहीं है
हिना जिस हाथ का ज़ेवर नहीं है
वही खुशहाल है इस दश्त में भी
जो अपने जिस्म में होकर नहीं है
मियाँ कुछ रूह डालो शायरी में
अभी मंज़र में पसमंज़र नहीं है
सलामत आसमाँ की छत है जबतक
कोई संसार में बेघर नहीं है
यहाँ दर कम हैं दीवारें बहुत हैं
मकाँ कहिये इसे ये घर नहीं है
बहुत हल्के हुये किरदार सारे
किसी काँधे पे कोई सर नहीं है
ये दुनिया आसमाँ में उड़ रही है
ये लगती है मगर बेपर नहीं है
</poem>