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|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी
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अब आयेगा वो झोंका ताज़गी का
दरीचा खुल गया है शायरी का

किनारे काटती ही जा रही है
मैं पानी बन गया हूँ किस नदी का

कसक दिल में है कुछ इस तरह जैसे
भरोसा तोड़ डाला हो किसी का

पता चल जाये तो जड़ से मिटा दूँ
सिरा मिलता नहीं पर तीरगी का

मैं उसको बाँहों में रखता जकड़ कर
बदन होता जो उस पल की खुशी का

छुपाऊँ किस तरह उस से मुहब्बत
उसे भी इल्म है दिल की लगी का</poem>