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07:04, 13 दिसम्बर 2012 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी
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<poem>
कभी तो राहे-मुहब्बत में ये कमाल दिखे
बिना बताये उसे मेरे दिल का हाल दिखे
बहार आती है तो फूल भी निखरते हैं
है दिल में प्यार तो गालों पे भी गुलाल दिखे
दिल उसकी सारी ख़ताएं मुआफ़ कर देगा
बस उस की आँखों में इक मरतबा मलाल दिखे
दिमाग़ प्यार को भगवान कह न पायेगा
ग़ज़ल की फ़िक्र में दिल का ही इस्तेमाल दिखे
खिज़ां के दौर में जब सब ने दर्द पाया है
तो फिर बहार में क्यूँ कोई तंगहाल दिखे
सफ़र का चलते ही रहना तो ठीक है लेकिन
क़दम वहाँ पे रखें क्यूँ जहाँ बवाल दिखे</poem>
हैं साथ इस खातिर कि दौनों को रवानी चाहिये
पानी को धरती चाहिए धरती को पानी चाहिये
ऐ जाने वाले कुछ अलग तस्वीर देता जा तेरी
सब कुछ भुलाने के लिए कुछ तो निशानी चाहिये
उस पीर को परबत हुए काफ़ी ज़माना हो गया
उस पीर को फिर से नई इकतर्जुमानीचाहिये
नाज़ुक बयाँ दे कर मिलेगा उलझनों का हल नहीं
हल चाहिये तो फिर बयाँ में सचबयानी चाहिये
हम जीतने के ख़्वाब आँखों में सजायें किस तरह
लश्कर को राजा चाहिए राजा को रानी चाहिये
कुछ भी नहीं ऐसा कि जो उसने हमें बख़्शा नहीं
हाजिर है सब कुछ सामने बस बुद्धिमानी चाहिये
लाजिम है ढूँढें और फिर बरतें सलीक़े से उन्हें
हर लफ्ज़ को हर दौर में अपनी कहानी चाहिये
इस दौर के बच्चे नवाबों से ज़रा भी कम नहीं
इक पीकदानी इन के हाथों में थमानी चाहिये
</poem>