सफ़र का चलते ही रहना तो ठीक है लेकिन
क़दम वहाँ पे रखें क्यूँ जहाँ बवाल दिखे</poem> हैं साथ इस खातिर कि दौनों को रवानी चाहियेपानी को धरती चाहिए धरती को पानी चाहिये ऐ जाने वाले कुछ अलग तस्वीर देता जा तेरीसब कुछ भुलाने के लिए कुछ तो निशानी चाहिये उस पीर को परबत हुए काफ़ी ज़माना हो गयाउस पीर को फिर से नई इकतर्जुमानीचाहिये नाज़ुक बयाँ दे कर मिलेगा उलझनों का हल नहींहल चाहिये तो फिर बयाँ में सचबयानी चाहिये हम जीतने के ख़्वाब आँखों में सजायें किस तरहलश्कर को राजा चाहिए राजा को रानी चाहिये कुछ भी नहीं ऐसा कि जो उसने हमें बख़्शा नहींहाजिर है सब कुछ सामने बस बुद्धिमानी चाहिये लाजिम है ढूँढें और फिर बरतें सलीक़े से उन्हेंहर लफ्ज़ को हर दौर में अपनी कहानी चाहिये इस दौर के बच्चे नवाबों से ज़रा भी कम नहींइक पीकदानी इन के हाथों में थमानी चाहिये
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