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07:06, 13 दिसम्बर 2012 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी
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<poem>
भुला दिया है जो तूने तो कुछ मलाल नहीं
कई दिनों से मुझे भी तेरा ख़याल नहीं
अभी-अभी तो सितारे ज़मीं पे उतरे हैं
अभी से बज़्म से अपनी मुझे निकाल नहीं
है दर्द तू ही दवा तू हक़ीम तू ही मरीज़
तेरा कमाल यही है तेरी मिसाल नहीं
फ़क़त यक़ीन पे चलता है ज़िन्दगी का सफ़र
वगरना कौन है जो ढो रहा सवाल नहीं
दुखा है दिल तभी ये बात मन में आई है
ये घर सराय नहीं और हम हमाल नहीं
ख़मोशियों की इसे क्यूँ न इन्तेहा कह दूँ
ज़ुबाँ ख़मोश हैं आँखों में भी सवाल नहीं
मैं उस खजूर को बरगद का नाम दूँ कैसे
मैं इक अदीब हूँ बाज़ार का दलाल नहीं
</poem>