<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">लोहे का स्वादधूप वाले दिन</div><div style="font-size:15px;"> कवि:[[धूमिलदेवेन्द्र आर्य| धूमिलदेवेन्द्र आर्य]] </div>
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</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
शब्द किस तरहशील ने कितने चुभोएकविता बनते हैंइसे देखोअक्षरों कोहरे के बीच गिरे हुएआदमी को पढ़ोक्या तुमने सुना कि यहलोहे की आवाज़ है यापिनमिट्टी में गिरे हुए ख़ूनअलगनी पर टँक गएका रंग लो, धूपवाले दिन ।
लोहे का स्वादठुमकती फिरती वसंती हवालोहार से मत पूछोउपवन में,घोड़े से पूछोगीत गातीं कोयलेंजिसके मुँह मदमस्त मधुबन में लगाम है ।फूल पर मधुमास करता नृत्यता धिन-धिनअलगनी पर टँक गएलो, धूपवाले दिन । पीतवसना घूमती सरसोंलगा पाँखें,मस्त अलसी की लजातीनीलमणि आँखें ।ताल में धर पाँवउतरे चाँदनी पल छिनअलगनी पर टँक गएलो, धूपवाले दिन । दूर वंशी के स्वरों मेंगूँजता कानन,वर्जना टूटीखिला सौ चाह का आनन ।श्याम को श्यामा पुकारेसाँस भर गिन-गिनअलगनी पर टँक गएलो, धूपवाले दिन ।
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