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कहाँ पहुँचे सुहाने मंज़रों तक / द्विजेन्द्र 'द्विज'
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02:30, 18 जनवरी 2013
ये कौन आया
हमारी
गुफ़्तगू
में
दिलों की बात पहुँची नश्तरों तक
निचुड़ना था
किनारों को
हमेशा
नदी को भागना था सागरों तक
बचीं तो कल्पना
बनकर उड़ेंगी
अजन्मी बेटियाँ भी अम्बरों तक
द्विजेन्द्र द्विज
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