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समुद्र तट पर / येहूदा आमिखाई

104 bytes added, 18:52, 11 फ़रवरी 2013
[[Category:यहूदी भाषा]]
  <poem>
निशाँ जो रेत पर मिलते थे
 
मिट गए
 
उन्हें बनाने वाले भी मिट गए
 
अपने न होने की हवा में
 
कम ज़्यादा बन गया और वह जो ज़्यादा था
 
बन जाएगा असीम
 समुद्र -तट की रेत की तरह  
मुझे एक लिफ़ाफ़ा मिला
 
जिसके ऊपर एक पता था और जिसके पीछे भी एक पता था
 
लेकिन भीतर से वह खाली था
 
और ख़ामोश
 
चिट्ठी तो कहीं और ही पढ़ी गई थी
 
अपना शरीर छोड़ चुकी आत्मा की तरह
 
वह एक प्रसन्न धुन
 
जो फैलती थी रातों को एक विशाल सफ़ेद मकान के भीतर
 
अब भरी हुई है इच्छाओं और रेत से
 लकड़ी के दो खम्बों के बीच कतार से टंगे टँगे
स्नान-वस्त्रों की तरह
 जलपक्षी धरती को देख कर चीखते चीख़ते हैं  
और लोग शांति को देख कर
 ओह मेरे बच्चे - मेरे सिर की वे संतानें  
मैंने उन्हें बनाया अपने पूरे शरीर और पूरी आत्मा के साथ
 और अब वे सिर्फ सिर्फ़ मेरे सिर की संतानें हैं  
और मैं भी अब अकेला हूँ इस समुद्र-तट पर
 रेत में कहीं-कहीं उगी थरथराते डंठलों वाली खर -पतवार की तरह  
यह थरथराहट ही इसकी भाषा है
 
यह थरथराहट ही मेरी भाषा है
 
हम दोनो के पास एक समान भाषा है !
 
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : शिरीष कुमार मौर्य'''
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