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|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
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<poem>
मोहन खेल रहे है होरी ।
गुवाल बाल संग रंग अनेकों, धन्य-धन्य यह होरी ।
वो गुलाल राधे ले आई, मन मोहन पर ही बरसाई,
नन्दलाल भी लाल होगये, लाल-लाल वृज गौरी ।
गुवाल सखा सब चंग बजावें, कृष्ण संग में नाचें गावें,
ऐसी धूम मचाई कान्हा, मस्त मनोहर जोरी ।
नन्द महर घर रंग रँगीला,रंग-रंग से होगया पीला,
बहुत सजीली राधे रानी, वे अहिरों की छोरी ।
शोभा देख लुभाये शिवजी, सती सयानी के हैं पिवजी,
शिवदीन लखी होरी ये रंग में, रंग दई चादर मोरी ।
<poem>
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