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अपाहिज व्यथा / दुष्यंत कुमार
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07:04, 1 अप्रैल 2013
समालोचको की दुआ है कि मैं फिर,
सही शाम से आचमन कर रहा हूँ ।
</poem>
।
अनिल जनविजय
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