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10:39, 5 अप्रैल 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|अंगारों पर शबनम / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
घुटन से जूझता हूँ गीत खुशियों के लिखूँगा क्या
हैं जब हालात रोने के तो ऐसे में हँसूँगा क्या
मेरे क़दमों की धूल उसने सजा ली अपने माथे पर
मैं उससे ही दग़ा करता हुआ अच्छा लगूँगा क्या
तुम्हारे आँसुओं ने सब हक़ीक़त खोल कर रख दी
बचा क्या कहने सुनने को कहूँगा क्या, सुनूँगा क्या
अगर मरना पड़े यारब तो दोनों साथ मर जाएँ
वो मेरे बिन जिएगी क्या, मैं उसके बिन जिऊँगा क्या
ये क्या कम है कई ग़ज़लें तुम्हारे नाम कर दी हैं
मैं इक शायर हूँ शेरों के अलावा और दूँगा क्या
</poem>