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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|अंगारों पर शबनम / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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<poem>
पत्थर को पिघलाने जैसा तुमको प्यार सिखाना है
वन में दीप जलाने जैसा तुमको प्यार सिखाना है

तुम बेदर्द ज़माने के सांचे में ढली इक मूरत हो
इक परबत सरकाने जैसा तुमको प्यार सिखाना है

तुम दौलत के अनुबंधन पर जीवन जीने के आदी
जल पर चित्र बनाने जैसा तुमको प्यार सिखाना है

स्वारथ के विद्यालय में तुमने बरसों शोषण सीखा
गरल पियूष बनाने जैसा तुमको प्यार सिखाना है

तुमने सुखभोगों के हित में शुभ मनभावों को मारा
मृत में प्राण जगाने जैसा तुमको प्यार सिखाना है

भौतिक लाभों से चिर प्रेरित कर्मों में तुम डूबे हो
पश्चिम-सूर्य उगाने जैसा तुमको प्यार सिखाना है

निष्फल सारे यत्न ‘अकेला’, सच बोलूँ तो गूंगे से
कोई गीत गवाने जैसा तुमको प्यार सिखाना है
</poem>
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