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17:23, 9 अप्रैल 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=गुलज़ार
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<poem>
दिल मियाँ मिट्ठू थे
मर्ज़ी के पिट्ठू थे
हो दिल मियाँ मिट्ठू थे
अरे मर्ज़ी के पिट्ठू थे
वो मेरी कहाँ सुनते थे
अरे अपनी ही धुन पे थे
दिल मियाँ मिट्ठू थे
मियाँ जी बच बच के चलना
दुनिया है हरजाई
हरी हरी जो लागे
घास खड़ी है काई
अरे काई पे फिसले जो सुर्र करके
फुर्र करके तोते उड़ गए
फुर्र फुर्र करके तोते उड़ गए
इश्क में यूँ फिसले मियाँ
हाथों के तोते उद्द गए
तोते उद्द गए
फुर्र करके तोते उड़ गए
फुर्र फुर्र करके तोते उड़ गए
दिल मियाँ मिट्ठू थे
मर्ज़ी के पिट्ठू थे
अकड़े तो तगड़े से
और पकडे तो मकड़े से
दिल मियाँ मिट्ठू थे मिट्ठू मियाँ
मियाँ जी मुड़ मुड़ के न देखो
मुड़ मुड़ न देखो मियाँ जी
अजी नज़रों में कोई नहीं है
नज़र लगाईं थी अंखियाँ हाँ
सालों से सोई नहीं हैं
सपने से धंसने पे सुर्र
तोते! फुर्र करके तोते उड़ गए
ओ पतली गली में फिसले मियाँ
हाथो के तोते उड़ गए
मेरे नग मुंदरी विच पा दे
ते पावे मेरी जिंद कड लै
के पावे मेरी जिंद कड लै
अक्खी रात मैं गई तबेले
माझी मिल जावे.
मुक जान झमेले
माझी मिल जावे...
मुक जान झमेले
मेरी सेज तो अकल बिछा दे
ते पावे मेरी जिंद कड लै
के पावे मेरी जिंद कड लै
फुर्र करके तोते उड़ गए
फुर्र फुर्र करके तोते उड़ गए
फुर्र करके तोते उड़ गए
फुर्र फुर्र करके तोते उड़ गए
फिल्म - एक थी डायन(2013)
</poem>