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जीवन की आपाधापी में / हरिवंशराय बच्चन
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04:40, 12 अप्रैल 2013
मैनें भी बहना शुरु किया उस रेले में,
क्या बाहर की ठेला-पेली ही कुछ कम थी,
जो भीतर भी भावों का
उहापोह
ऊहापोह
मचा,
जो किया, उसी को करने की मजबूरी थी,
जो कहा, वही मन के अंदर से उबल चला,
डा० जगदीश व्योम
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