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01:12, 1 मई 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नीरज गोस्वामी
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<poem>
ज़िन्दगी में जो ग़म नहीं होता
नाम रब का अहम नहीं होता
तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
अब के रिश्तों में हम नहीं होता
क़त्ल अब खेल बन गया क्यूँ की
सर सज़ा में कलम नहीं होता
दोस्ती हो के दुश्मनी इसमें
यार कोई नियम नहीं होता
रोटियों के सिवा ग़रीबों का
और कुछ भी इरम नहीं होता
इरम : स्वर्ग
आप मुड़ कर न देखते तो हमें
प्यार है, ये भरम नहीं होता
चीखता है वही सदा " नीरज"
जिसकी बातों में दम नहीं होता
</poem>